कविता:-
*"जीवन"*
"निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।
सत्य-पथ चल कर साथी-साथी,
कभी न कोई मन से हारा।।
सुख की चाहत में पल पल साथी,
क्यों- भटका ये मन बेचारा?
मिटती भटकन तन-मन की साथी,
साथी-साथी बने सहारा।।
मंझधार में डूबी जीवन नैया,
मिलता नहीं उसको किनारा।
त्यागमय होता जीवन साथी,
मिलता अपनो का सहारा।।
मैं-ही-मैं संग जीवन पग पग,
बनता अहंकार का निवाला।
त्यागे मैं जीवन का साथी,
बनता अपनो का सहारा।।
अपनो के लिए जीते जो साथी,
उनका सुख होता तुम्हारा।
निष्कंटक होता जीवन सारा,
मिलता जो प्रभु का सहारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 13-02-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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