कविता:-
*"पतझड़"*
"देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।
बेबस सोचता रहा हर पल,
कब-थमेगी साथी-
जीवन की घुटन।
प्रतीक्षा में मधुमास की,
साथी बढ़ती रही-
जीवन में कुढ़न।
बढ़ती रही पीड़ा पतझड़ की,
साथी मिला नहीं-
मधुमास का संग।
भौरो की गूँजन से साथी,
जीवन में-
मोह हुआ भंग।
चाहत में मधुमास की साथी,
हो गया जीवन में-
प्रतीक्षा का अंत।
देखता ही रहा जीवन में,
पतझड़ संग-
पत्तो की झरन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 14-02-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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