कविता:-
*"जीवन-साथी"*
"अग्नि-पथ यही जीवन सारा,
क्यों-साथी जीवन से हारा?
हर हार में साथी फिर यहाँ,
ढूँढ़ ले जीत का सहारा।।
ठहरे न कदम जीवन-पथ पर,
जब तक साथी साथ तुम्हारा।
रोक ही लेते कदम साथी,
मिलता न तुम्हारा सहारा।।
बसती न नफरत मन में यहाँ,
भटकता न कदम फिर तुम्हारा।
साथ निभाते जीवन साथी,
जीवन ही होता तुम्हारा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 16-02-2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
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