सुनील कुमार गुप्ता
कविता:-
*"व्याकुलता"*
"सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?
बहुत कुछ पाने की चाहत ही,
साथी पग-पग-
देती आतुरता।
सागर की तरह जीवन में,
साथी सब कुछ-
समेट ले अपने में।
फिर भी पल पल साथी,
बनी रहती-
जीवन में व्याकुलता।
अपनत्वहीन जीवन में साथी,
मिटती नहीं पीड़ा-
इस तन-मन की।
होती नहीं आत्मसंतुष्टि साथी,
इस जीवन में-
कैसे-मिटती व्याकुलता?
सब कुछ पा कर भी साथी,
पल-पल जीवन में-
क्यों-रहती व्याकुलता?"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 31-01-2020
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