कविता:-
"जीत"
"भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।
मन से न हारना कभी साथी,
जीवन में तुम्हे-
हार मिले या जीत।
हार में होना न निराश साथी,
जीत में ज्य़ादा -
मनाना न जश्न मीत।
हँसते ही रहेगे लोग तो साथी,
जीवन में चाहे-
हार हो या जीत।
हार कर भी हारे न जो साथी,
चलता रहे लक्ष्य की ओर-
मिलती मंज़िल टूटे न आशा की डोर।
भटकता रहा मन बावरा साथी,
समझा न एक बात-
मन के हारे हार है-मन के जीते जीत।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 05-02-2020
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