सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
         *"रैन"*
"मौन रहकर जीवन में वो,
क्यों-हरती मन का चैन?
कह सके व्यथा तन-मन की,
कब-आयेगी वो रैन?
ढलती शाम धीरे-धीरे ,
छाई अंधेरी रैन।
थम गई जीवन आशाएं,
कब-देखे भोर ये नैन?
भूल गया जीवन अपना,
खोई सपनो में रैन।
सच हो जीवन सपना यहाँ,
पा जाये सुख ये नैन।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...