सुनीता असीम

क्यूं यहां आपने ये शोर मचा रक्खा है।
एक हमने भी यहाँ दीप जला रक्खा है।
***
तेरे वादे पे मुझे आज यकीं हो ही गया।
मेरे दिल ने तेरा जादू जो चढ़ा रक्खा है।
***
देवता तुझको बनाके मैंने की है पूजा।
तेरी तस्वीर को दिल में भी सजा रक्खा है।
***
तेरी यादों को सजाया मैंने ख्वाबों की तरह।
और तूने मेरी बातों को उड़ा रक्खा है।
***
तुम मुहब्बत की करो बातें अकेले हमसे।
क्या सताने में भला हमको मजा रक्खा है।
***
सुनीता असीम
१०/२/२०२०


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