है काम ख्वाब का आँखों में सिर्फ पलने का।
फसा जो इनमें तो दिल वो रहा मचलने का।
***
नहीं किसी का रहा ये कभी जमाने में।
ये वक्त रहता हमेशा ही नाम ढलने का।
***
बेआसरा जो किया यार ने किसी को तो।
कि सिलसिला ए उदासी नहीं ये टलने का।
***
बहुत हुईं ये पुरानी परम्पराएँ भी।
हुआ है वक्त हमारा अभी बदलने का।
***
कि बालकों को दें चेतावनी सही हम तो।
नहीं है वक्त अभी उनका तो फिसलने का।
***
सुनीता असीम
१५/१/२०२०
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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