मुहब्बत में शराफत आ रही है।
किसी के नाम चाहत आ रही है।
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खिले हैं फूल से चेहरे सभी अब।
पिता की जो वसीयत आ रही है।
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बरसती है दुआ सीआसमाँ से।
हमें उससे ही ताकत आ रही है।
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हुआ मोदी का शासन जबसे देखो।
बेईमानों की शामत आ रही है।
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सच्चे दिल से किए हों काम सब।
तभी फिर साथ कुदरत आ रही है।
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कोरोना चीन में फैला भले ही।
यहाँ भी उसकी दहशत आ रही है।
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लड़कपन से रहे जो कल तलक थे।
लो उनमें आज अज़मत आ रही है।
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सुनीता असीम
६/२/२०२०
अजमत-बड़प्पन
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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