सुनीता असीम

मुहब्बत में शराफत आ रही है।
किसी के नाम चाहत आ रही है।
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खिले हैं फूल से चेहरे सभी अब।
पिता की जो वसीयत आ रही है।
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बरसती है दुआ सीआसमाँ से।
हमें उससे ही ताकत आ रही है।
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हुआ मोदी का शासन जबसे देखो।
बेईमानों की शामत आ रही है।
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सच्चे दिल से किए हों काम सब।
तभी फिर साथ कुदरत आ रही है।
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कोरोना चीन में फैला भले ही।
यहाँ भी उसकी दहशत आ रही है।
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लड़कपन से रहे जो कल तलक थे।
लो उनमें आज अज़मत आ रही है।
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सुनीता असीम
६/२/२०२०
अजमत-बड़प्पन


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