सुनीता असीम

जब प्यार सामने था मैंने ख्याल बाँधे।
धरती हरी हुई थी ऐसे अकाल बाँधे।
***
वो शाम का समय था उसके गले लगे थे।
अपने हिजाब से उसने क्या जमाल बाँधे।
***
कुछ धड़कनें बढ़ीं थीं कुछ शोर चाहतों का।
आँखें मिलीं हमारी उनमें कमाल बांधे।
***
कुछ पूछती निगाहें उसकी रहीं हमेशा।
मुझको लगा कि उनमें उसने सवाल बाँधे।
***
वो चेहरा रहा बस था चाँद को लजाता।
जुल्फें उड़ी हवा में उनमें रुमाल बाँधे।
***
सुनीता असीम
८/२/२०२०


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