सुनीता असीम
सूरत तेरी जो देखी तो चन्दा मचल गया।
देखा जो ताब हुस्न का सूरज पिघल गया।
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जिस प्यार का ज़बाब मुझे मिल नहीं सका ।
परिणाम जान प्यार का मन ही बदल गया।
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कैसे कहूं मुझे है मुहब्बत तो आपसे।
बस आपके मिजाज पे ये दिल फिसल गया।
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इस इश्क की किताब का मजमून मौन था।
पर बोलते ही वक्त भी कितना निकल गया।
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मजनूं मरा व लैला मरी प्रेम के लिए।
मरने के भी ख्याल से दिल में दहल गया।
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सुनीता असीम
४/२/२०२०
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