सुनीता असीम सूरत तेरी जो देखी तो चन्दा मचल गया।

सुनीता असीम


सूरत तेरी जो देखी तो चन्दा मचल गया।
देखा जो ताब हुस्न का सूरज पिघल गया।
***
जिस प्यार का ज़बाब मुझे मिल नहीं सका ।
परिणाम जान प्यार का मन ही बदल गया।
***
कैसे कहूं मुझे है मुहब्बत तो आपसे।
बस आपके मिजाज पे ये दिल फिसल गया।
***
इस इश्क की किताब का मजमून मौन था।
पर बोलते ही वक्त भी कितना निकल गया।
***
मजनूं मरा व लैला मरी प्रेम के लिए।
मरने के भी ख्याल से दिल में दहल गया।
***
सुनीता असीम
४/२/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...