सुनीता असीम

लग रहे ख्वाब सभी तबसे ही ख़ारों की तरह।
हो गए जबसे तुम्हीं गुम हो सराबों की तरह।
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तुम रहो अपने महल अपने ही चौबारों में।
अपने ही घर में हम भी रहें नबाबों की तरह।
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इक नज़र देख लिया करना झरोखों से तुम।
शर्म से गाल खिलेंगे ये गुलाबों की तरह। 
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जब उठा दिल में सवालों का समन्दर कोई।
सामने आईं तभी तुम तो जबाबों की तरह।
***
हर्फ दर हर्फ तुझे पढ़ती रहूँ हर पल मैं।
चेहरा तेरा लगा मुझको किताबों की तरह।
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सुनीता असीम
१७/२/२०२०


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