सुरेंद्र सैनी बवानीवाल  झज्जर (हरियाणा )

बस यूं ही..... 


जब तन्हा हुआ 
अपनी रोज़ाना की दिनचर्या से 
कुछ भी महसूस ना हुआ 
जैसे संवेदना क्षीण हो गयी 
सेहर मे मगन रहा 
दोपहर में गुम रहा 
आयी जो शाम तो 
फिर मुझसे रुका ना गया 
चला गया ऊँची किसी छत पर 
और निहारने लगा चाँद -तारों को 
मन में सवाल उठा 
जैसे मानव सोच का कोई अंत नहीं 
वैसे ही आकाश का कोई अंत नहीं 
दूर तलक चाँद रूपी मानव 
और बाकी तारों भरी दुनियादारी 
वही रात -ए -निशा 
वही ज़िन्दगी 
और सुकून ढूंढ़ते लोग 
लेकिन ये सच है "उड़ता "
मनुष्य रहता है अकेला तमाम  उम्र. 



✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
झज्जर (हरियाणा )


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