तो क्यों.......
मैंने जब भी
तुमसे कोई सवाल किया
तुमने सवाल ही जवाब दिया
बातों में उलझा लिया
जाने क्यों
अपने एहसासों को
अपने तक सीमित किया
कि तेरा मन किले जैसा है
जिसमें सिर्फ तुम ही
दाखिल हो सकते हो.
किसी और के लिए
वहाँ इजाज़त नहीं.
जब तक तुम ना चाहो
तो कोई आदमी
क्या उम्मीद रखे
तेरे बारे में क्या सोचे.
कैसे समझे
तेरी खामोश भाषा.
कैसे देख पाए
तेरी आँखों के भित्तिचित्र
तेरे भीतर का सूनापन
और ये हो सकता है "उड़ता "
कि तुझे तेरे हाल पर
ख़ुश छोड़ दें
अगर तुम रहो?
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com
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