चाहत ना मिली......
ज़माने में उसे मोहब्बत ना मिली.
सलीके की कभी सोहबत ना मिली.
लोग तो मिले चलते सरे -राह,
मगर अपने जैसी कोई आदत ना मिली.
बचपन जाकर कहीं छिप गया.
बड़े हुए तो कोई शरारत ना मिली.
कमाने की मजबूरियां बनती गयी,
कठिनता में कहीं रियायत ना मिली.
सोचा रब से वास्ता जरुरी है,
मंदिर में देखा तो मूरत ही मिली.
था बियाबान जीवन की पगडंडियों पर,
किसी इंसान की सूरत ना मिली.
खामोशियों में रहा सफ़र अपना.
जज़्बातों में भी आहट ना मिली.
दूर तक आकाश खाली था,
परिंदों की सुगबुगाहट ना मिली.
जिसे लफ़्ज़ों में ढ़ाल लेता,
ैएसी कोई कहावत ना मिली.
लेखन तेरी आदत रहा "उड़ता ",
किसी को नज़्मों की चाहत ना मिली.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
संपर्क - 9466865227
झज्जर ( हरियाणा )
udtasonu2003@gmail.com
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