एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ l मैं यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति समय के बीतने साथ-साथ जाने-अंजाने बहुत कुछ खोता जाता है l अंजाने में खोये हुए रिश्तों/यादों/सुखों को वह ज़िन्दगी भर खोजता रहता है जो कभी भी ..…...…..
**ढूँडे नहीं है मिलता**
---------------------
पिता की वो झूटी फटकार,
माँ की थपकी-लोरी-प्यार l
वो सोंधे रिश्ते प्यार-दुलार,
वो अपनापन अपनों का प्यार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
मीठे रिश्तों की मनुहार,
दादी-बाबा करें दुलार l
नाना-नानी प्रेम बहार,
अपना खुशियों का संसार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
बुआ से मिलता निश्छल प्यार,
चाचा देते सब कुछ वार l
मामा-मौसी का परिवार,
होता प्रेम का पारावार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
गिल्ली-डन्डा-लट्टू यार,
चरखी-फिरकी की भरमार l
होती क्षणभ्रंगुर तकरार,
झूटे गुस्से में जो प्यार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
सोंधी मिट्टी धूल-गुबार,
बहती सावन शीत-बयार l
रिमझिम बूंदों की बौछार,
तीनों मौसम के उपकार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
"उमेश" ये करते सदा विचार ,
प्रेम का कैसे हो परचार l
धरती प्रेम का ही सार,
होवें सबके यही विचार ll
ढूँडे नहीं है मिलता .....
----------
----उमेश प्रकाश ,
एफ-2136 राजाजी पुरम,
लखनऊ--226017
मोब--9616135035
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें