उमेश प्रकाश , राजाजी पुरम, लखनऊ--

एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ l मैं यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति समय के बीतने साथ-साथ जाने-अंजाने बहुत कुछ खोता जाता है l अंजाने में खोये हुए रिश्तों/यादों/सुखों को वह ज़िन्दगी भर खोजता  रहता है जो कभी भी ..…...…..


**ढूँडे नहीं है मिलता**
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पिता की वो झूटी फटकार,
माँ की थपकी-लोरी-प्यार l 
वो सोंधे रिश्ते प्यार-दुलार,
वो अपनापन अपनों का प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


मीठे रिश्तों की मनुहार,
दादी-बाबा करें दुलार l 
नाना-नानी प्रेम बहार,
अपना खुशियों का संसार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


बुआ से मिलता निश्छल प्यार,
चाचा देते सब कुछ वार l 
मामा-मौसी का परिवार,
होता प्रेम का पारावार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


गिल्ली-डन्डा-लट्टू यार,
चरखी-फिरकी की भरमार  l 
होती क्षणभ्रंगुर तकरार,
झूटे गुस्से में जो प्यार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


सोंधी मिट्टी धूल-गुबार,
बहती सावन शीत-बयार l 
रिमझिम बूंदों की बौछार,
तीनों मौसम के उपकार ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....


"उमेश" ये करते सदा विचार ,
प्रेम का कैसे हो परचार l 
धरती प्रेम का ही सार,
होवें सबके यही विचार  ll 
ढूँडे नहीं है मिलता .....
       ----------
              ----उमेश प्रकाश ,
  एफ-2136 राजाजी पुरम,
          लखनऊ--226017
      मोब--9616135035


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