वज़्न - 2122 1212 22
काफ़िया - आ स्वर
रदीफ़ - नहीं होता।
बेख़ुदी में रहा नहीं होता।
हुस्न पर गर फ़िदा नहीं होता।
वक्त पर जो सँभल गये होते।
साथ ये हादसा नहीं होता।
दर्द से दोस्ती अगर होती
आंसुओं ने छला नहीं होता।
ज़ख्म पर ज़ख्म दे रहे हो कयूं।
प्यार करना सज़ा नहीं होता।
ज़ख्म चाहे मेरे कुरेदो तुम।
दर्द मुझको ज़रा नहीं होता।
मिल के उस गमगुसार को अब तो।
दर्द दिल का ज़रा कम नहीं होता।
आसमां भी कदम तले होगा
हौसला हो तो क्या नहीं होता।
कोशिशें लाख की मगर उत्तम।
कम मगर फासला नहीं होता।
©@उत्तम मेहता "उत्तम"
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