विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति
जिस पथ चलना आम नही
-------------------------------;;----
तुम बैठे बैठे दिन काटो
और तुम्हें कुछ काम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
उपक्रम शून्य हुआ जीवन तो
देह प्राण की कहां जरूरत
तुम चाहो तो ढूंढ़ो जितना
करो प्रतीक्षा मिले मुहूरत
अपने लिए नही कोई प्रातः
और नही है शाम कोई
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
डर डर कर जो जीवन काटे
और भयाकुल मर जाएं
नही यथार्थ से कभी मिले वे
खालिस मन मे शंकाएं
ऐसे लोगों का दुनिया मे
क्या रहता है नाम कहीं
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
सरल नही यह निर्णय करना
साहस करना पड़ता है
कठिनाईयां प्रबल होती हैं
नित नित मरना पड़ता है
आदि अंत तुम ही सोचो
हम सोचें परिणाम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
उस पथ पर चलते हैं जो भी
दृढ़ संकल्प लिए मन मे
निज क्षमता आजाद हुए वे
कहां रहे कोई बंधन मे
श्रम उपक्रम ही मुख्य श्रोत है
कभी किया विश्राम नही
जाउंगा मैं उस पथ पर ही
जिस पथ चलना आम नही ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छग,अभिव्यक्ति-698
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें