भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"सोचकर बोली बोलो"*
(कुण्डलिया छंद)
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■दहलाता दिल को कभी, छोटा कड़वा बोल।
कारण बनता बैर का, देता है विष घोल।।
देता है विष घोल, सोचकर बोली बोलो।
बात बने मत बाण, शहद वाणी में घोलो।।
कह नायक करजोरि, स्नेह मन को सहलाता।
करो न वह परिहास, हृदय को जो दहलाता।।


■बहलाता मन को सदा, प्यारा मीठा बोल।
आकुलता हिय की हरे, देता वह रस घोल।।
देता वह रस घोल, नेह का संचार करे।
पावन प्रेम प्रसार, सहज मन का ताप हरे।।
कह नायक करजोरि, भला जन वह कहलाता।
बोल मधुर मुख-बैन, हृदय को जो बहलाता।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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