भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
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विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
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*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनेक जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति-दायिनी वह हर पल है, स्नेहिल है, सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*सतत् सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*करें देव भी उपकार वहाँ, मान जहाँ पाती नारी।
अवलंब सदा है वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की अब हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
गढ़ती नव नित प्रतिमान सुता, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।


*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि शांति है, ममता की फुलवारी है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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