राम चरित मानस कठोर नही अपितु अत्यंत कोमल है व्याख्या
बन्दउँ मुनि पद कंज रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि मैं उन श्रीबाल्मीकिजी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है और जो खर(राक्षस)सहित होने पर भी खर(कठोर)से विपरीत बड़ी कोमल और सुन्दर है तथा जो दूषण(राक्षस)सहित होने पर भी दूषण अर्थात दोषों से रहित है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
श्री करुणासिन्धु जी के अनुसार श्री गो0जी इस दोहे में श्री बाल्मीकिजी की स्वरूपाभिनिवेश वन्दना करते हैं जिससे मुनिवाक्य श्रीमद्रामायणस्वरूप हृदय में प्रवेश करे।नमस्कार करते समय जब स्वरूप,प्रताप,ऐश्वर्य व सेवा मन में समा जाते हैं तो उस नमस्कार को स्वरूपाभिनिवेश वन्दना कहते हैं।
इस दोहे में गो0जी ने श्लेष व विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है।यथा,,
सखर शब्द का एक अर्थ कठोरता व कर्कशता युक्त होता है और दूसरा अर्थ खर नामक राक्षस के सहित है।इसी प्रकार दूषण का एक अर्थ दोष सहित व दूसरा अर्थ दूषण राक्षस से है।अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।पुनः गो0जी का भाव यह है कि इस रामायण में कठोरता व कर्कशता नहीं है।कठोरता के नाम से केवल खर नामक राक्षस ही मिलेगा।दूसरे यह रामायण दोष रहित है क्योंकि दोष के नाम से इसमें दूषण नामक राक्षस ही मिलेगा।पुनः यह रामायण सखर होते हुए भी सुकोमल है और दोषरहित होते हुए भी दूषण सहित है।अतः इस वर्णन में विरोधाभास अलंकार है।
श्रीअयोध्याधामजी के महान सन्त व रामायणी,मानस तत्वान्वेषी,वेदान्तभूषण,साहित्यरत्न पं0 श्री रामकुमारजी के मतानुसार श्रीबाल्मीकिजी की रामायण काव्य के समस्त दोषों से सर्वथा रहित है क्योंकि इसमें असत्य नहीं है किन्तु इसमें अप्रिय सत्य तो अवश्य है जो दोष तो नहीं है किन्तु दूषण तो अवश्य ही कहा जा सकता है।मनुस्मृति में कहा गया है,,,
सत्यं ब्रूयात् प्रियम ब्रूयात् न ब्रूयात्सत्यमप्रियम।
श्रीरामचरितमानस में भी गो0जी ने कहा है--
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी।
श्रीबाल्मीकिजी ने अपनी रामायण में कई स्थलों पर अप्रिय अथवा कटु सत्य कहा है।जैसे श्रीलक्ष्मणजी का वनवास के समय पिता के लिए कठोर वचन कहना,माँ सीताजी द्वारा मारीच वध के समय श्री लक्ष्मणजी को मर्म अथवा कटु वचन कहना, प्रभुश्री रामजी द्वारा माँ सीताजी को अग्निपरीक्षा के समय दुर्वाद कहना आदि।
गो0जी ने इन अप्रिय सत्यों को स्पष्ट न कहकर अपने काव्य को दूषण रहित कर दिया।जैसे,,
लखन कहेउ कछु बचन कठोरा।
मरम बचन जब सीता बोला।
तेहि कारन करुनानिधि कहे कछुक दुर्बाद।
उपरोक्त स्थलों पर गो0जी ने सत्य का निर्वाह तो कर दिया परन्तु अपनी कविता में अप्रियतारूपी दूषण न आने दिया।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें