*"रंग तेरे रंग लूँ"* (युगल गीत)
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*साँवरी तू पास आ, मोसे नहीं दूर जा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
साँवरिया बेणु बजा, नाचूँ मैं नाच नचा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
*मैं तेरा कान्हा हूँ, तू है मेरी राधा।
लागे सूना तुम बिन, यह जीवन है आधा।।
आज रंग तन-मन लूँ, और मुझे दे न दगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
*सपनों में तेरे ही, खोयी रहती हूँ मैं।
पिया-मिलन आस लगी, बाट जोहती हूँ मैं।।
तोसे शृंगार करूँ, लूँ मैं हर अंग जगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
*रंगों-रंगा तेरे, यह मेरा मन गोरी।
तुझको ही बुला रही, बंशी मोरी भोरी।।
आकर तू आज मुझे, निजपन का रंग लगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
*स्वप्न सजाया तेरा, अपने मन के आँगन।
फीके हैं रंग सभी, तेरे बिन सुन साजन।।
रंगों की आड़ आज, मुझको तू अंग लगा।
रंग तेरे रंग लूँ, आज मुझे रंग लगा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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