स्नेहलता "स्नेह" सीतापुर,सरगुजा छ.ग.

दिनाँक-5/03/2020


22 22 22 22 22 2


ग़ज़ल
******
शिक्षा को हथियार बनाना हे नारी
आँसू को अंगार बनाना हे नारी


चूड़ी कंगन तो इस तन की शोभा है
 सपनों को श्रृंगार बनाना हे नारी


साधी चुप्पी तूने लाखों जुल्म सहे
लफ़्जों को तलवार बनाना हे नारी


सारे रिश्ते काँटों के जब ताज बने
जीवन खुद गुलज़ार बनाना हे नारी


तुझमें शक्ति देवी दुर्गा काली सी
कमज़ोरी क्या यार बनाना हे नारी


अपनी रक्षा करने के तुम गुर  सीखो
मत खुद को लाचार बनाना हे नारी


तेरी तुलना गंगा यमुना से होती 
सारा जग परिवार बनाना हे नारी


स्नेहलता "स्नेह"
सीतापुर,सरगुजा छ.ग.


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...