अखण्ड प्रकाश कानपुर

# अप्रतिम रचना#
          "सरस्वती-कवच"
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विनियोग:-( घनाक्षरी )
अम्बे के कवच के ऋषि है हंस ओ मयूर।
देवता सरस्वती आकाश तत्व योग है।।
छन्द है घनाक्षरी ओ शक्ति शारदा भवानी।
मुदित "प्रकाश" ये अज़ब संजोग है।।
कर दो कृपा सुनो ओ भय भंजना भवानी।
काट दो विपत्ति आदि जो भी रोग भोग है।
उज्वल भविष्य बीज मंत्र आपका करेगा।
मैया की प्रसन्नता के हेतु विनियोग है।।
ध्यान:-
शारदे सुशीला सौम्य सरस सरस्वती जी।
ध्यान में हमारे सुख रुप दिखलाइये।।
कर में समायी वीणा दबी पग नीचे पीड़ा।
हंस पे विराज आज दौड़ी चली आइये।।
भक्त की पुकार अंगीकार कर लेना अम्बे।
मन के विकार आज दूर लौं हटाइए।।
करें गुणगान बुद्धिमान स्वाभिमान जग।
हृदय कमल मम आसन लगाइये।।
कवच:-
शीस की सुरक्षा करें शीतला सुरेश्वरी जी।
नेत्र की सुरक्षा नैनादेवी ही कराएंगी।।
कर्ण की कुमारी केश केशव पियारी जानें।
नासिका सुरक्षा को सुगंधिका जी आएंगी।।
मुख की मुदित मातु कंठ की कण्ठेश्वरीजी।
बाहु में तो बज्र बाहु माता सुख पाएंगी।।
हृदय की शारदे उदर की उदार अम्बे।
कटि भार कालिका तपस्वनी उठाएंगी।।
पग पाएंगे सुरक्षा भ्रामरी भवानी मां से।
जोड़ जोड़ तंत्रिकाओं को संवार दीजिए।
अस्थि मज्जा लोहू मांस सबसे हटा विकार।।
सुत को सुरक्षित कवच कर दीजिए।।
दो मयूर सा स्वरूप पोथी जैसा ज्ञान भरो।
हंस के समान न्यायकारी बुद्धि दीजिए।
जग में करा के कर्म जीव का बताके मर्म।
शारदे शरण ले चरण प्यार दीजिए।।
उपसंहार:- ( कुण्डली छंद )
कवच तुम्हारा शारदे , सारगर्भ मय जांन।
कृपा भवानी की मिले , मूढ़ बने संज्ञान।।
मूढ़ बने संज्ञान , बुद्धि संमार्गी होती।
बड़ी बड़ी बाधाएं , भगतीं रोती रोती।।
कह "अखण्ड" सौगंध, बचन यह सत्य हमारा।
भरे आत्म विश्वास ,  शारदे कवच तुम्हारा।।


नोट:-मित्रो, मां की कृपा ही कहुंगा, कि यह रचना विगत कई वर्षों पहले नवरात्रि में मात्र दो घंटे में लिख गयी।
सच्चाई है कि यह मेरे वश की बात नहीं है।


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