*"माता का मान बढ़ाना"*
(कुकुभ छंद गीत)
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विधान- 16 - 14 पर यति के साथ प्रतिपद 30 मात्रा, पदांत $$, युगल पद तुकांतता।
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¶सेवा करते सत्कर्मों से, माता का मान बढ़ाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
न्योछावर कर जीवन अपना, तुम वीर-प्रसूत कहाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
¶क्रन्दन करती-मातु बिलखती, अपनी ही संतानों से।
शर्मिंदा है भारत माता, उत्छृंखल-मनमानों से।।
अब तो सीधा राह चलो रे, मानव का धरम निभाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
¶मोह बहुत निज जीवन से है, पर पर-प्राणों का प्यासा।
करनी पर अति गर्व न करना, देर नहीं पलटत पासा।।
तम क्यों घिरता है नैनों में, हो जब-जब प्राण-लुटाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
¶लुटती लाज यहाँ जब-जब है, हा! मानवता रोती है।
देख दशा को दया न आती, नैन-झरे नित मोती है।।
सोच तनिक तो कभी कुकर्मी, निज करनी पर शर्माना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
¶तत्पर सीमा की रक्षा को, सैनिक जैसे होते हैं।
काँपे कपटी-कुटिल-कुचाली, रिपु-गण रण में रोते हैं।
"नायक" अर्पण शीश करे जो, सीख वही तुम अपनाना।
जन्म जहाँ पर तुमने पाया, उस माटी पर मिट जाना।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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