बलराम सिंह यादव मानस व्यख्याता धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

रामचरित मानस में गोस्वामी जी द्वारा शत्रुघ्न जी की वन्दना


रिपुसूदन पद कमल नमामी।
सूर सुसील भरत अनुगामी।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  श्रीमद्गोस्वामी जी कहते हैं कि अब मैं श्रीशत्रुघ्नजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ जो बड़े वीर,सुशील और श्रीभरतजी के अनुगामी अर्थात उनके पीछे चलने वाले हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  श्रीरामचरितमानस में श्रीगो0जी ने श्रीशत्रुघ्नजी को लगभग मौन रखा है।यहाँ उनके चरणकमलों की वन्दना की है और नामकरण संस्कार में उल्लेख किया है।यथा,,,
जाके सुमिरन ते रिपु नासा।
नाम सत्रुहन बेद प्रकासा।।
 विनय पत्रिका में गो0जी ने श्रीशत्रुघ्नजी की विशेष वन्दना की है जिसमें उन्होंने उनके स्वभाव, स्वरूप,वीरता आदि गुणों का उल्लेख किया है।यथा,,,
जयति जय शत्रु-करि-केसरी शत्रुहन,
शत्रुतम-तुहिनहर किरणकेतु।
देव-महिदेव-महि-धेनु-सेवक सुजन-सिद्ध-मुनि-सकल- कल्याण हेतु।।
जयति सर्वांगसुन्दर सुमित्रा-सुवन,
भुवन-बिख्यात-भरतानुगामी।
वर्मचर्मासि-धनु-बाण-तूणीर-धर
शत्रु-संकट-समय यत्प्रणामी।।
जयति लवणाम्बुनिधि-कुम्भसम्भव महा-दनुज-दुर्जनदवन,दुरतिहारी।।
लक्ष्मणानुज,भरत-राम- सीता-चरण-रेणु-भूषित-भाल-तिलकधारी।।
जयति श्रुतिकीर्ति-वल्लभ सुदुर्लभ सुलभ 
नमत नर्मद भुक्तिमुक्तिदाता।
दास तुलसी चरण-शरण सीदत विभो,
 पाहि दीनार्त्त-सन्ताप-हाता।।
 उपरोक्त पद का भावार्थ आगामी प्रस्तुति में।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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