बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म व्यख्याता

गोस्वामी जी द्वारा वेदों की वन्दना ओर श्री राम चरित मानस द्वारा साकार निराकार पर व्यख्यान


बन्दउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जस।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ जो संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए जहाज के समान हैं और जिन्हें प्रभुश्री रामजी का निर्मल यश वर्णन करते समय स्वप्न में भी खेद अथवा थकावट महसूस नहीं होती है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  वेद चार हैं--
1--ऋग्वेद।
2--सामवेद।
3--यजुर्वेद।
4--अथर्ववेद।
  वेदों में जिस निराकार  परमपिता परमात्मा की वन्दना की गयी है, वे ही साकार रूप से अवतार लेते हैं।इन्हीं अवतारों में प्रभुश्री रामजी का एक प्रमुख अवतार है।यथा,,,
एक अनीह अरूप अनामा।
अज सच्चिदानन्द परधामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहि धरि देह चरित कर नाना।।
  पुनः सगुण और निर्गुण ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।ऐसा मुनि,पुराण,पण्डित और वेद कहते हैं।जो निर्गुण, निराकार,अव्यक्त और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण कर लेता है।जैसे जल,बर्फ और वाष्प में कोई भेद नहीं है क्योंकि ये उसके तीन रूप ही हैं।प्रभुश्री रामचन्द्रजी पूर्ण सच्चिदानन्द ब्रह्म का ही सगुण अवतार हैं।वे ही व्यापक ब्रह्म,परमानन्दस्वरूप,
परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं इस बात को सारा संसार जानता है।जिस निराकार ब्रह्म का वेद और पण्डित वर्णन करते हैं, वही दशरथ के पुत्र,भक्तों के हितकारी,अयोध्या के स्वामी भगवान श्रीरामचन्द्रजी हैं।भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को प्रभुश्री रामजी के विषय में विस्तृत रूप से यही बात बतायी थी।यथा,,
राम सच्चिदानन्द दिनेसा।
नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना।
परमानन्द परेस पुराना।।
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सब कर परम प्रकासक जोई।
राम अनादि अवधपति सोई।।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू।
मायाधीस ग्यान गुन धामू।।
जासु कृपा अस भ्रम मिटि जाई।
गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमान निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।
जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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