बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक मांनस मराल

राम चरित मानस महात्म्य


जे एहि कथहि सनेह समेता।
कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता।।
होइहहिं राम चरन अनुरागी।
कलिमल रहित सुमंगल भागी।।
सपनेहुँ साँचेहुँ मोहि पर जौं  हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाषा भनिति प्रभाउ।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जो इस रामकथा को प्रेमसहित एवं सावधानी के साथ समझबूझ कर कहेंगे व सुनेंगे,वे कलियुग के पापों से रहित और सुन्दर मङ्गल कल्याण के अधिकारी होकर प्रभुश्री रामजी के चरणों के प्रेमी बन जायेंगे।
  यदि मुझ पर श्री शिवजी और माता पार्वतीजी की स्वप्न में भी सचमुच प्रसन्नता हो,तो मैंने इस भाषा कविता का जो प्रभाव कहा है वह सब सत्य हो।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  श्रीमद्गोस्वामी जी ने इस 
रामकथामृत का कथन,श्रवण व 
गान करने का महत्व और उसका फल कई स्थलों पर वर्णित किया है।यथा,,
रामचरन रति जो चह अथवा पद निर्बान।
भावसहित सो यह कथा करउ श्रवन पुट पान।।
(उत्तरकाण्ड)
 सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।
(सुन्दरकाण्ड)
सुनु खगपति यह कथा पावनी।
त्रिबिध ताप भव भय दावनी।।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।।(उ0का0)
 प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग होने से कलिमल का नाश हो जाता है।विनय पत्रिका में गो0जी कहते हैं---
रामचरन अनुराग नीर बिनु कलिमल नास न पावै।।
 इस ग्रँथ के अन्तिम छन्द में भी गो0जी इसी बात का उल्लेख करते हैं।यथा,,,
रघुबंसभूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम रामधाम सिधावहीं।।
सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंचजनित बिकार श्री रघुबर हरै।।
 जिस प्रकार इन पंक्तियों में प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में अनुराग रखने वालों के लिए फलश्रुति कही गई है वैसे ही गो0जी ने प्रभुश्री रामजी के चरणों से विमुख रहने वालों के लिए भी फलश्रुति कही है।यथा,,
जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए।
ते कायर कलिकाल बिगोए।।
तृषित निरखि रबि कर भव भारी।
फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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