भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*माँ का अस्तित्व* (रोला छंद)      -------------------------------------------
विधान- ११ एवं १३ मात्रा पर यति के साथ प्रतिपद २४ मात्रा, चार चरण, युगल पद तुकांतता। 
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*माँ है जग-आधार, इसी में विश्व समाये।
माँ के बिन उपकार, जनम कोई कब पाये ??
पीकर माँ का दूध, छाँव ममता की पाये ।
जग में है विख्यात, किसे  माता न सुहाये ??


*माँ तो है वरदान, हरे वह विपदा सारी।
सृष्टि-वृष्टि हर दृष्टि, मातु की प्यारी-न्यारी।।
ऋद्धि-सिद्धि हर तुष्टि, अतुल है अपार है माँ ।
विश्व-विशद-प्रतिरूप, स्वयं ही विहार है माँ ।।


*माँ तो सतत दयालु, काज हर करती पूरा ।
करती है माँ पूर्ण, पिता का प्यार अधूरा ।।
बुरी बला दे टाल, लगाती काला टीका।
पूजा की है थाल, ऋचा वेदों-सम नीका।।


*साँसों का सुरताल, हृदय में बन रहती है।
निज संतान-शरीर, रुधिर बनकर बहती है।।
जग-उपवन में फूल, बनी है सुगंध भी माँ ।
भाले निज परिवार, नेक है प्रबंध भी माँ ।।


*माँ का जो है त्याग, सोच लो मन में अपना।
क्यों लेते हो छीन? मातु का सुंदर सपना।।
जो है निज भगवान, मान दो माँ को आओ ।
जानो जग का तीर्थ, मातु-पद माथ-झुकाओ ।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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