आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल,। ओमनगर, सुलतानपुर यूपी,

सुकर्म और लाज


बस चा र सवैया छंद


लाज जहां तुम्हें आनी रही वहीं बेबस हो इकरार किया।।
ध्यान रहा ना रहा तुमको परमेश्वर भी अरुझाय दिया ।।
निर्भय आऊ निडरता हु पंथ ग ही शर्मशार यूं गांव कुटुम्ब किया ।।


भा ख त चंचल धिक धिक्कार बेशर्मी कै सबक तु कंठ किया ।।1 ।।


सावधान सखे बड भागी वहीं चौरासी मा जो तन मानव पाए ।।
आश्रम वा शिक्षालय ग ये ज ह गुरुजन नीक बेकार ब ताए।।


नीक तौ पंथ कठोर लगी जेहि कारण पंथ कुपंथ हु धाये।।
भा ख त चंचल चूक गा औसर  नाहक अब तो हरे पछताए।।2 ।।


समय विधाता हु देत सब य कोई छाड़त पर कोइ कोइ अपनाई।।
बड भागी रहा जग जीव व ह ई जो नीक हु पंथ जना अपनाए।।


सम्मान सुआदर पाव त ऊ  ब हु ज़ीव हु ते वही आशीष पा ए।।
भा ख त चंचल देखि दशा जो विचारे बिना ही कुपन थ हि  धा ये।।3।।


परिणाम मिले सबका सबका चाहे राह कुनीती सुनीति न जाए।।
बुरा जब हाथ लगा निज काज तो वेग ही ईश्वर दोष गनाए।।
पड़ोसी बदे गड हा जो खने तब सम्भव है खुद ही गिर जाए।।
भा ख त चंचल दोष कहां बर जोरी विधाता जी तूने लगाए।।4।।
आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल,।
ओमनगर, सुलतानपुर यूपी,
8853521398।।


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