सुकर्म और लाज
बस चा र सवैया छंद
लाज जहां तुम्हें आनी रही वहीं बेबस हो इकरार किया।।
ध्यान रहा ना रहा तुमको परमेश्वर भी अरुझाय दिया ।।
निर्भय आऊ निडरता हु पंथ ग ही शर्मशार यूं गांव कुटुम्ब किया ।।
भा ख त चंचल धिक धिक्कार बेशर्मी कै सबक तु कंठ किया ।।1 ।।
सावधान सखे बड भागी वहीं चौरासी मा जो तन मानव पाए ।।
आश्रम वा शिक्षालय ग ये ज ह गुरुजन नीक बेकार ब ताए।।
नीक तौ पंथ कठोर लगी जेहि कारण पंथ कुपंथ हु धाये।।
भा ख त चंचल चूक गा औसर नाहक अब तो हरे पछताए।।2 ।।
समय विधाता हु देत सब य कोई छाड़त पर कोइ कोइ अपनाई।।
बड भागी रहा जग जीव व ह ई जो नीक हु पंथ जना अपनाए।।
सम्मान सुआदर पाव त ऊ ब हु ज़ीव हु ते वही आशीष पा ए।।
भा ख त चंचल देखि दशा जो विचारे बिना ही कुपन थ हि धा ये।।3।।
परिणाम मिले सबका सबका चाहे राह कुनीती सुनीति न जाए।।
बुरा जब हाथ लगा निज काज तो वेग ही ईश्वर दोष गनाए।।
पड़ोसी बदे गड हा जो खने तब सम्भव है खुद ही गिर जाए।।
भा ख त चंचल दोष कहां बर जोरी विधाता जी तूने लगाए।।4।।
आशु कवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल,।
ओमनगर, सुलतानपुर यूपी,
8853521398।।
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