अवनीश त्रिवेदी"अभय"

एक मुक्तक


वज़न - 1222      1222       1222      1222


जहाँ से जब कभी जाओ निशानी छोड़कर जाना।
हमेशा  ही  जुबानी  हो  कहानी   छोड़कर  जाना।
जमाने  की  किसी शौहरत  का लालच नही आये।
जमी दरिया दिलों  की हो  रवानी  छोड़कर जाना।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...