अवनीश त्रिवेदी "अभय"

एक अवधी घनाक्षरी


हिय  धड़कति   हइ,  तन   फड़कति  हइ, 
जब  से  ये  नैनन  ने,  उनको  निहारो  है।
सुध  बुध गवाँई  के, शीश निज  नवाई के, 
अपनो   ये  तन  मन,  उनपे  ही  वारो  है।
जैसे खिलो गुलाब हो, खुशबू बेहिसाब हो,
रावरे  के   रुप  ऐसो,  ईश  ने  सँवारो  है।
दरपन   निहारति,   केश    लट   सँवारति, 
कोमल  अधर  बीच,  हँसी  को  दरारो  है।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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