पेश ए ख़िदमत हैं इक नई ग़ज़ल
कल अलग थे मग़र हमसफ़र हो गए।
ज़िन्दगी के सफ़र की डगर हो गए।
रुख़ हमारे जुदा हैं मग़र गम नहीं।
देखने को जहाँ इक नज़र हो गए।
मन्ज़िले रोज़ पाते गए हम नई।
छाँव ख़ातिर मग़र हम शज़र हो गए।
दास्तां प्यार की रोज सुनते रहे।
अब उसी दास्तां का असर हो गए।
वक़्त के साथ सब तो बदलतें गए।
हम वहीं पर खड़े थे भँवर हो गए।
खूब तब्दीलियाँ रोज होती रही।
शाम थे जो क़भी अब सहर हो गए।
अब 'अभय' ज़िन्दगी फ़क्त मुश्किल नही।
हर दिवस खूबसूरत पहर हो गए।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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