नारी की महिमा
हे! जगतजननी नारी तुमको मम कोटि प्रणाम हैं।
तुम्हीं से ही पुष्पित पल्लवित सारे आयाम हैं।
इसी संसार में तुम्हारे उपकार घनेरे हैं।
तुमसे जहाँ की शोभा और हर साँझ सवेरे हैं।
हर हारे थकित मनुज को तुम इक हौसला दिलाती।
जो प्यास से हो व्याकुल उसे शीतल वारि पिलाती।
तुम बिन ये जीवन सूना हर सुख फ़ीके लगते हैं।
साथ आपका हो तो हर लब्ज सलीक़े लगते हैं।
बौने शब्द पड़ जाते कीर्ति तुम्हारी कहने में।
रण में भी संबल देती हो तलवारें गहने को।
जब जब जरूरत पड़ी साहस अदम्य दिखलाया हैं।
आँच देश पर न आये सबको सबक सिखलाया हैं।
हम ऋणी आपके हे नारी जीवन भर रहते हैं।
इस सकल विश्व मे सबसे उत्तम तुमको कहते हैं।
तिमिर में चपला बनती मृगसिरा में पुरवाई हो।
स्वर कर्ण प्रिय लगते तुम पाणिग्रहण शहनाई हो।
अवनीश त्रिवेदी "अभय
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