अवनीश त्रिवेदी "अभय"

पेश ए ख़िदमत है इक नई ग़ज़ल


तिरे दर पर खिज़ा के अब कभी मौसम नही होते।
हमारे साथ  जब तुम हो कभी भी गम  नही  होते।


करो  इन्कार  चाहें  तुम  मग़र  ये बात  भी सच है।
बहुत  बेचैन  रहते  हो  कभी  जब  हम  नही होते।


बिछड़ने  का तसब्बुर  भी  बड़ा  तकलीफ  देता है।
तिरे  अहसास  के  साये  कभी  भी कम  नही होते।


कभी  फ़ुरसत  नही  मिलती  हज़ारों काम रहते हैं।
दिलों  में  प्यार  के  लम्हें  कभी  हरदम  नही होते।


बड़े  मग़रूर  है  फिर  भी  रवायत का हुनर भी है।
हमारे  अश्क़  साज़ों  की  कभी  सरगम नही होते।


बहारें  ही  नही  आती  कभी भी कोइ महफ़िल में।
हमारे  पास  जब  तक  अब मिरे हमदम नही होते।


हमेशा  बात  दिल  की  बोल   बेबाक़ी  से  देते  है।
हमारे   साफ़   ज़ेहन  में  तमाम  भरम  नही  होते।


ज़रूरत  गर  पड़े  तो  फिर  इशारों से समझ जाये।
सभी के  आँख के मोती 'अभय' शबनम नही होते।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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