कुण्डलिया
कोरोना के कहर से, अखिल विश्व घबराय।
सब इससे कैसे बचें, सूझै नही उपाय।
सूझै नही उपाय, बंद सब काम धाम हैं।
कैसे मन समझाय, व्यथित हर सुबह शाम हैं।
कहत 'अभय' समुझाय, हाथ मल मल कर धोना।
भीड़ भाड़ से बचो, रुकेगा तब कोरोना।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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