कुण्डलिया
होली भावति खूब हैं, सबके ह्रदय अपार।
रंग - बिरंगे पर्व की, जचती खूब बहार।
जचती खूब बहार, नेह के रंग लगाए।
अधरन मृदु मुस्काय, दिलों से वैर मिटाए।
कहत 'अभय' कविराय, बनें सबकी हमजोली।
हो सबके प्रति स्नेह, मनाये ऐसे होली।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें