बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता

श्री हनुमत चरित्र


प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गत दो दिनों में इस दोहे का भावार्थ लिखा जा चुका है परन्तु गो0जी ने श्रीहनुमानजी जी को ही अपना गुरू कहा है।
श्रीहनुमानचालीसा में गो0जी कहते हैं---
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
 श्रीहनुमानजी की कृपा से ही उन्हें प्रभुश्री रामजी के चित्रकूट में दर्शन हुए थे।इस घटना का उल्लेख "गोसाईंचरित" नामक खण्डकाव्य में गो0जी के समकालीन कवि श्री वेणीमाधव जी ने किया है जो गो0जी को अपना गुरू मानते थे।यद्यपि गो0जी ने किसी को भी दीक्षा या मन्त्र नहीं दिया था।
 "गोसाईंचरित"में श्रीवेणीमाधव जी ने उस घटना का कविता के रूप में बड़ा सुन्दर वर्णन किया है जब चित्रकूट में प्रभुश्री रामजी ने गो0जी को दर्शन देकर उनके मस्तक पर तिलक लगा दिया था।यथा,,,
हठि ठानि तेहि पहिचानि मुनिवर,विनय बहु बिधि भाषेऊ।
पद गहि न छाड़उँ पवनसुत, कह कहउ जो अभिलाषेऊ।।
रघुबीर दर्शन मोहि कराइअ,मुनिवर कहेउ गदगद बचन।
तुम जाहु सेवहु चित्रकूट,
तहाँ दरस पैहहु चखन।।
श्री हनुमन्त प्रसंग यह विमल चरित विस्तार।
लहेउ गोसाईं दरस रस बिदित सकल संसार।।
चित चेति चले चित्रकूट चितय,मन मांहि मनोरथ को उपचय।।
जब सोंचहिं आपन मंद कृती,पग पाछे पड़े जु रहै न धृती।।
सुधि आवत राम स्वभाव जबै,तब धावत मारग आतुर ह्वै।।
एहि भाँति गोसाईं तहाँ पहुँचे,किय आसन राम सुघाटहिं पै।।
एक बार प्रदच्छिन देन गये, तँह देखत रूप अनूप भये।।
जुग राजकुमार सुअश्व चढ़े, मृगया बन खेलन जात कढ़े।।
छवि सो लखि कै मन मोहेहु पै,अस को तनु धारि जो जानि सकै।।
हनुमन्त बतायउ भेद सबै, पछिताय रहे ललचाइल ह्वै।।
तब धीरज दीन्हेउ वायुतनय,पुनि दर्शन पैहहु प्रात समय।।
सुखद अमावस मौनिया बुध सोरह सै सात।
जा बैठे तिस घाट पर बिरही होत प्रभात।।
प्रगटेउ राम सुजान कहेउ लेहु बाबा मलय।
सुक बपु धरि हनुमान पढ़ेउ चेतावनि दोहरा।।
चित्रकूट के घाट पर भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसैं तिलक देत रघुबीर।।
रघुबीर छबि निरखन लगे बिसरी सबै सुधि देह की। 
को घिसै चन्दन दृगन ते बहि चली सरित सनेह की।।
प्रभु कहेउ पुनि सो नाहि चेतेउ स्वकर चंदन लै लिये।
दै तिलक रुचिर ललाट पै निज रूप अन्तर्हित किये।।
बिरह ब्यथा तलफत पड़े मगन ध्यान इक तार।
रैन जगाये पवनसुत दीन्हीं दसा सुधार।।
।।सियावर रामचन्द्रजी की जय।।
।।पवनसुत हनूमानजी की जय।।
।।उमापति महादेवजी की जय।।
।।जय जय श्री राधे।।


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