बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

राम चरित मानस में गो0तुलसी दास जी द्वारा की गई विभिन्न लोंगो की वन्दना


बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि।।
पुनि बन्दउँ सारद सुरसरिता।
जुगल पुनीत मनोहर चरिता।।
मज्जन पान पाप हर एका।
कहत सुनत एक हर अबिबेका।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  देवता,ब्राह्मण,पण्डित, ग्रह--इन सबके चरणों की वन्दना करके हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप प्रसन्न होकर मेरे सारे मनोरथों को पूर्ण करें।फिर मैं श्रीसरस्वतीजी और देवनदी श्रीगङ्गाजी की वन्दना करता हूँ।ये दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं।श्रीगङ्गाजी स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती हैं और श्रीसरस्वतीजी गुण और यश का कथन करने व सुनने से अज्ञान का नाश कर देती हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---उपरोक्त पंक्तियों में गो0जी अपने काव्य को सर्वसुलभ बनाने व जगत का कल्याण करने हेतु इन सभी की वन्दना करते हैं।इन सभी का कार्य भी जगत का कल्याण करना ही है।इनमें श्रीसरस्वतीजी व श्रीगङ्गाजी जलरूप से हमारे पापों को हरती हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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