बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्यख़्याता

रामचरित मानस द्वारा सर्व सिद्ध कलयुगी शाबर मंत्र प्रयोग की विवेचना


कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा।
साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा।।
अनमिल आखर अरथ न जापू।
प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  जिन भगवान शिवजी व माँ पार्वतीजी ने कलियुग को देखकर, संसार के हित के लिए साबर मन्त्रसमूह की रचना की,जिनमें मन्त्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप,तथापि भगवान शिवजी के प्रताप से जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  कलि बिलोकि अर्थात कलियुग के प्रभाव को देखकर कहने का तात्पर्य यह है कि कलियुग में पूर्ण विधि विधान से योग,यज्ञ,जप,तप,व्रत,पूजा,ज्ञान, वैराग्य आदि सम्भव ही नहीं हैं।केवल भगवद्भक्ति ही इस कलिकाल से मुक्त रखने का एकमात्र उपाय है।गो0जी ने श्रीरामचरितमानस के अन्त में यही बात कही है।यथा,,,
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलम्बन एकू।।
एहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
सन्तत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।
 विनय पत्रिका में भी गो0जी का उद्घोष है,,,
राम राम जपु जियँ सदा सानुराग रे।
कलि न बिराग जोग जाग तप त्याग रे।
एक ही साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे।
ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे।।
  भगवान शिवजी विरचित साबर मन्त्र सतयुग, त्रेता व द्वापरयुग में नहीं था।कलियुग में भगवान शिवजी माँ पार्वती जी के साथ भीलरूप से प्रकट हुये और भील भाषा में सिद्ध साबर मन्त्र की रचना की जिसका उपयोग सर्पादि विषों को उतारने के लिए व अन्य कार्यों के लिए किया जाता है।इन मन्त्रों में अक्षरों के मिलान से कोई अर्थ नहीं निकलता है परन्तु भगवान शिवजी की कृपा से तान्त्रिक लोग उनका उपयोग करते हैं।प्रायः भील जाति के तान्त्रिक इन मन्त्रों का उपयोग विषैले जन्तुओं जैसे सर्प,बिच्छू,बर्र,ततैया भौंरा आदि के काटने पर तथा शरीर में गलसुआ, फोड़ा फुंसी, पित्ती,दाँत दर्द,अंगुली पकने पर उन्हें ठीक करने के लिए करते हैं।इन मन्त्रों के अक्षरों में कोई मेल नहीं होता है और सुनने में अजीब से लगते हैं और जपने का भी कोई विशेष नियम नहीं है फिर भी दृढ़विश्वास के आधार पर रोगी को लाभ हो जाता है।इसे ही भगवान शिवजी के प्रताप का प्रभाव कहा जाता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...