सिय निंदक ओर माता कौशल्या की गूढ़ व्याख्या
सिय निंदक अघ ओघ नसाये।
लोक बिसोक बनाइ बसाये।।
बन्दउँ कौसल्या दिसि प्राची।
कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जँह रघुपति ससि चारू।
बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी।
सुकृत सुमंगल मूरति मानी।।
करउँ प्रनाम करम मन बानी।
करहु कृपा सुत सेवक जानी।।
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता।
महिमा अवधि राम पितु माता।।
।श्रीरामचरितमानस।
प्रभुश्री रामजी ने अपनी पुरी अयोध्या में रहने वाले श्री सीताजी की निन्दा करने वाले धोबी और उसके समर्थकों के पापसमूह को नाश कर उनको शोकरहित बनाकर अपने लोक में बसा दिया।मैं कौशल्या रूपी पूर्व दिशा की वन्दना करता हूँ, जिनकी कीर्ति समस्त संसार में फैल रही है।जहाँ कौशल्यारूपी पूर्व दिशा से विश्व को सुख देने वाले और दुष्टरूपी कमलों के लिए पाले के समान प्रभुश्री रामचन्द्रजीरूपी सुन्दर चन्द्रमा प्रकट हुये।अब सभी रानियों सहित मैं राजा दशरथ को पुण्य और सुन्दर कल्याण की मूर्ति मानकर मन वचन और कर्म से प्रणाम करता हूँ।अपने पुत्र का सेवक जानकर वे मुझ पर कृपा करें, जिनको रचकर श्रीब्रह्माजी ने बड़ाई पायी तथा जो श्रीरामजी के माता पिता होने के कारण महिमा की सीमा हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
सिय निन्दक का तात्पर्य उस धोबी से है जिसने माता सीताजी की यह कहकर निन्दा की थी कि जिन्हें लंकेश्वर रावण अपहरण कर लंका ले गया था उन्हें रामजी ने अपनी महारानी बनाकर अयोध्या में रहने दिया।उसने अपनी पत्नी को सीताजी का उदाहरण देकर यह कहा था कि मैं रामजी जैसा नहीं हूँ जो पत्नी के दूसरे के घर रहने के बाद भी अपने घर में रख लिया।
इन पंक्तियों में गो0जी ने माता कौशल्या को पूरब दिशा कहा क्योंकि पूर्ण चन्द्रमा पूर्व दिशा में ही उदित होता है और भगवान श्रीरामजी को चन्द्रमा कहा।चन्द्रमा का प्रकाश शीतल और सुखद माना जाता है।यहाँ कमल को खल कहने का भाव यह है कि कमल की जिस जल से उत्पत्ति होती है, उसी से वह विमुख रहता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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