श्री राम चरित मानस में श्री रामजन्म भूमि अयोध्या का वर्णन
बन्दउँ अवधपुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावन।।
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी।
ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि अब मैं अति पवित्र श्रीअयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली श्रीसरयू नदी की वन्दना करता हूँ।फिर मैं अवधपुरी के उन नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिन पर प्रभुश्री रामजी की ममता कम नहीं है अर्थात बहुत अधिक है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
अयोध्या को अति पावन कहने का भाव यह है कि सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी कहा गया है।यथा,,
अयोध्या मथुरा माया काशी काँची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तपुरयश्च मोक्षदा।।
ये सातों पुरियां भगवान विष्णु के अंग में हैं।इनमें अयोध्यापुरी का स्थान मस्तक में है।
तीर्थराज प्रयाग कहीं नहीं जाते परन्तु श्रीरामनवमी के दिन वे भी अयोध्या आते हैं।यथा,,,
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं।।
अयोध्या धाम की महिमा का वर्णन गो0जी ने उत्तरकाण्ड में प्रभुश्री रामजी के श्रीमुख से स्वयं कराया है।यथा,,,
सुनु कपीस अंगद लंकेसा।
पावन पुरी रुचिर यह देसा।।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा।
मम समीप नर पावहिं बासा।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी।
मम धामदा पुरी सुखरासी।।
स्कन्दपुराण, रुद्रायमल,वशिष्ठसंहिता,
रामसुधा आदि कई ग्रन्थों व पुराणों में भी अयोध्याधाम के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मिलता है।रुद्रायमल में श्लोक संख्या 61 से 64 तक भगवान शिवजी ने माता पार्वतीजी को अयोध्यापुरी की महिमा का गान किया है।यथा,,,
भगवान शिवजी कहते हैं कि हे पार्वती!मन लगाकर अयोध्या की महिमा सुनो।अ वासुदेव हैं, य ब्रह्मा है और उ रुद्ररूप है, ऐसा मुनीश्वर उसका ध्यान करते हैं।सब पातक और उपपातक मिलकर भी उससे युद्ध नहीं कर सकते, इसीलिए उसका नाम अयोध्या है।भगवान विष्णु की यह आद्यपुरी उनके सुदर्शन चक्र पर स्थित है।यह पृथ्वी का स्पर्श नहीं करती है।यहाँ बहने वाली सरयू नदी में स्नान करने से कलियुग के समस्त पापों का नाश हो जाता है।यहाँ के समस्त नर नारी भी बड़े पुण्यवान हैं क्योंकि वे सभी जगन्नाथ स्वरूप हैं।इसीलिए वे सभी प्रभुश्री रामजी को अतिशय प्रिय हैं।इसी कारण साकेतधाम गमन के समय प्रभुश्री रामजी उन सभी को अपने साथ ही ले गये थे।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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