कवि कोबिद व्याख्या राम चरित मानस
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल।।
बन्दउँ मुनि पद कंज रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि हे कवि और विद्वतजन!आप जो रामचरित्ररूपी मानसरोवर के सुन्दर हँस हैं, मुझ अबोध बालक की विनती सुनकर और मेरी सुन्दर रुचि देखकर मुझ पर कृपा करें।मैं आदिकवि श्रीबाल्मीकि मुनि के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है और जो खर(राक्षस)सहित होने पर भी खर(कठोर)से विपरीत बड़ी कोमल और सुन्दर है तथा जो दूषण(राक्षस) सहित होने पर भी दूषण अर्थात दोषों से रहित है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---काव्य के सर्वाङ्गों को जानने वाले और निर्दोष व सर्वगुणों से विभूषित प्रभुश्री हरि का यशगान करने वाले तथा सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले ही वास्तव में कवि कहलाने के अधिकारी हैं।
काव्यांगों के साथ व्याकरण,भाषाओं के विद्वान, वेदशास्त्रों के भाष्यकार आदि को कोविद कहा जाता है।
श्रीरामचरितमानस को गो0जी ने मानसरोवर की संज्ञा दी है।जिस प्रकार मानसरोवर में क्षीरनीरविवेकी राजहंस रहते हैं और वे उसे छोड़ कर अन्यत्र कहीं नहीं जाते हैं उसी प्रकार इस रामचरितरूपी मानससर में सन्तजन डुबकी लगाते रहते हैं और वे किसी अन्य काव्य में विशेष रुचि नहीं रखते हैं।श्रद्धारहित और सत्संग रहित लोगों के लिए यह रामचरितमानस उसी प्रकार अगम व दुर्लभ है जिस प्रकार मानसरोवर झील में स्नान करना सामान्यजनों के लिए कठिन है।गो0जी कहते हैं--
जे श्रद्धा सम्बल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्ज बिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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