बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक व्याख्याता मानस मर्मज्ञ

राम जी के चरणों से सच्चा प्रेम


बन्दउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव परिहरेउ।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि अब मैं अयोध्या के राजा श्री दशरथजी की वन्दना करता हूँ, जिनका प्रभुश्री रामजी के चरणों में सच्चा प्रेम था,जिन्होंने दीनदयाल प्रभु के बिछुड़ते ही अपने प्रिय शरीर का साधारण तिनके की तरह त्याग कर दिया।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
 श्रीमद्गोस्वामीजी द्वारा सत्य प्रेम कहने का भाव यह है कि जब प्रभुश्री रामजी के वियोग में जीवन पर संकट आ जाय और मरण या मरणासन्न स्थिति हो जाय।दोहावली में सत्य प्रेम की व्याख्या करते हुए गो0जी कहते हैं--
मकर उरग दादुर कमठ जल जीवन जल गेह।
तुलसी एकइ मीन को है साँचिलो सनेह।।
 अर्थात मकर,सर्प,मेढ़क,कछुआ आदि सभी का जल में ही घर है और सभी का जल ही जीवन है परन्तु सच्चा प्रेम तो जल से मछली का ही है जो जल के बिना जीवित ही नहीं रह सकती है।
  रामवनगमन के समय अवधवासी भी अपने प्रेम को धिक्कारते हुये कहते हैं कि हमारा प्रेम तो झूठा है क्योंकि सच्चा प्रेम तो मछली का है जो जल से विलग होने पर अपने प्राण त्याग देती है।यथा,,,
निंदहिं आपु सराहहिं मीना।
धिग जीवन रघुबीर बिहीना।।
जौं पै प्रिय बियोगु बिधि दीन्हा।
तौ कस मरनु न माँगे दीन्हा।।
  महराज दशरथजी व माता कौशल्याजी ने भी अपने पूर्व जन्म में मनु व शतरूपा के रूप में तप करके भगवान से यही वरदान मांगा था कि हमें आप जैसा पुत्र प्राप्त हो और हमारा जीवन आप पर वैसे ही आधारित रहे जैसे मणि के बिना सर्प व जल के बिना मछली का जीवन होता है अर्थात उनका मरण हो जाता है।यथा,,,
दानि सिरोमनि कृपानिधि सत्य कहउँ सतिभाउ।
चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ।।
देखि प्रीति सुनि बचन अमोले।
एवमस्तु करुणानिधि बोले।।
आपु सरिस खोजौं कहँ जाई।
नृप तव तनय होब मैं आई।।
जो कछु रुचि तुम्हरे मन मांही।
मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं।।
 तब मनु व शतरूपा ने यह वर भी माँगा---
सुत बिषइक तव पद रति होऊ।
मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ।।
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना।
मम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना।।
अस बरु माँगि चरन गहि रहेऊ।
एवमस्तु करुणानिधि कहेऊ।।
अब तुम्ह मम अनुसासन मानी।
बसहु जाइ सुरपति रजधानी।।
तँह करि भोग बिसाल तात गये कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत।।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...