बलरामसिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

राम चरित मानस में महादेव शिव शंकर एवम मर्यादापुरुषोत्तम श्री भगवान राम के सम्बन्धो की सटीक व्याख्या


सेवक स्वामि सखा सिय पी के।
हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  गो0जी कहते हैं कि भगवान शिवजी श्री सीताजी के पति प्रभुश्री रामचन्द्रजी के सेवक,स्वामी और सखा हैं तथा मुझ तुलसीदास के सब प्रकार से सदैव निश्छल हितकारी हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  गो0जी ने इस महाकाव्य में कई स्थलों पर भगवान शिवजी को प्रभुश्री रामजी का सेवक,स्वामी व सखा कहा है।
1--सेवक के रूप में--
 शिवजी स्वयं माँ सतीजी से कहते हैं--
सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा।
सेवत जाहि सदा मुनि धीरा।।
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पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ।
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिव नायउ माथ।।
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी।
रघुबर सब उर अंतरजामी।।
2--स्वामी के रूप में--
तब मज्जन करि रघुकुलनाथा।
पूजि पार्थिव नायउ माथा।।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
3--सखा के रूप में--
संकर प्रिय मम द्रोही सिवद्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।।
संकर बिमुख भगति चह मोरी।
सो नारकी मूढ़ मति थोरी।।
 प्रभुश्री रामजी ने जब समुद्र पर सेतुबन्धन के समय शिवलिंग की स्थापना की तब,उसका नाम रामेश्वर रखा।रामेश्वर शब्द में सेवक,स्वामी और सखा तीनों का अर्थ हो सकता है।जैसे,,
 तत्पुरुष समास के आधार पर रामस्य ईश्वरः अर्थात राम के ईश्वर।
 बहुब्रीहि समास के आधार पर रामः ईश्वरो यस्यसौ रामेश्वरः अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं।
 कर्मधारय समास के आधार पर रामाश्चासौ ईश्वरश्च अथवा यो रामः स ईश्वरः अर्थात जो राम है वही ईश्वर है।
 सुप्रसिद्ध मानसकार व सन्त श्री काष्ठजिव्हास्वामी जी के मतानुसार भक्तिपक्ष में प्रभु से सभी सम्बन्ध बन सकते हैं।इसी आधार पर गो0जी ने शिवजी को प्रभुश्री रामजी का सेवक,स्वामी व सखा कहा है।पुनः एकादश रुद्रावतार श्री हनुमानजी के रूप में वे प्रभुश्री रामजी के सेवक हैं।रामेश्वर के रूप में वे स्वामी हैं और सुग्रीव के रूप में वे सखा भी हैं।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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