नव्य वर्ष
डाली - डाली महकेगी अब, हर पत्ता भी बोलेगा
हर शजर तैयार है इतना, झूम - झूमकर डोलेगा।
नव्य वर्ष की वेला है ये, खुशियों और उल्लासों का
बागों में बहार है आयी,चमक- धमक उजासों का।
माटी चंदन सा लगता है,दिखता जैसे जन्नत है
सज जाती है धरा हमारी, जान उनकी शोहरत है।
रंग - बिरंगे फूल खिले हैं, खेतों में हरियाली है
इस देश का चमन है महका,कोयल धून निराली है।
देखो सारे पेड़ फल गये, अनाज भरे खलिहानों में
झूमे - नाचे खुशी मनाए, उमंग भरा किसानों में।
वन - उपवन में म्यूरा नाचे, मोरनी ताल लगावे
रंग-रंग के फुदक चिरैया, सब का ई दिल बहलावे।
हवा वसंती पुरवाई में, अपना ई खेल दिखावे
विरहिन की तो बात अलग है,दर्द देह में भर आवे।
बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा - (बिन्दु)
बाढ़ - पटना
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