डा एन लक्ष्मी  पोर्ट ब्लेयर

 


"बहना कोरोना" 


दो जोडे कपडे बस काफी है 
घर में रहने की अब मजबूरी है 
भूल गए थे सब रिश्ते जो सारे 
फिर निभाने की उन्हें अब बारी है।  


काम काम के इस चक्कर में 
सूनेपन में बच्चे बंद है घर में। 
सुख सुविधा के साधन सब हैं 
ना ही बहना ना भाई है घर में। 


पप्पा- मम्मी लडते ही झगडते 
मेरी कभी भी फिकर न करते 
नौकर वाली करती रखवाली 
बेल्ट लगा घूमा करता चार दिवारी। 


भूख लगी तो खाना खाओ 
नहीं भूख तो चुप सो जाओ 
हुकूमत अब बदली है घर की 
राजा रानी का सुशासन फिर से। 


पप्पा मम्मी का अब लाडला बेटा 
घूमें भवन में मजे से संग सब लेटा 
भूख लगी तो खिलाती अब माता  
हाथ बढाए पप्पा, खाए सब मिल बांटा ।


दुहाई दूं कोरोना महामारी तुमको 
प्यार की राह दिखाई हम सब को 
समझ गए अब जीना धरती पर कैसे
स्वारथ छोड प्रेम बांट निरीह पशु से। 


कोरोना तुम हो मेरी प्यारी बहना 
जान न लेना अब माफ कर देना 
रखेंगे अब इस धरती को बचाकर 
पशु पक्षी पेड परबत मनुज बराबर ।


जियो और जीने दो का सीखा 
हमने पाठ बराबर सबको देखा 
सागर जीवों संग न करेंगे धोखा 
माँ अवनी से खिलवाड़ को रोका 


तुमने अपना काम किया है 
खुद की औकात हमें है दिखाई 
बहना कोरोना अब तुम जाओ, 
राह ताक रहे मांँ बाप हैं व्याकुल ।


देस अपने जाने का अब समय आ चुका 
खिडकी से कर दूं मैं तुम्हें अलविदा 
मत आओ कभी तुम इस धरती पर 
याद रखेंगे हम तुम्हें उम्र भर।।


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