डा.नीलम अजमेर

*ढलती शाम*


सुरमई पंख पसारे
आई साँझ 
मुंडेर पर
आँगन में उतरे
हरियाली के
श्यामल साए 
मीठे सुर-सरगम से
कानों में रस
घुलने लगे
थे परींदे लौट रहे
अनुशासन की
पांत में
थी व्याकुलता 
मिलने की छौनों से
उनकी बेकल पाँख में
खुल गये कपाट
मंदिर ओ' मस्जिदों के
एक सुर में गूँज गए
गीता और कुरान
लौट के हाली
घर को आए
पीछे-पीछे 
धूल उड़ाते चौपाये
भी आए
चिमनियों का सिमट धुँआ
कहीं किसी गली के
चूल्हे से उठने लगा
नटखट बच्चों का रेला भी
धूम मचाने लगा
आई साँझ ढल गई
रात ने डेरा डाला।


       डा.नीलम


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