डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"

मां वीणापाणि चरणों में मेरा एक गीत समर्पित है ।(संशोधित)


सुखद ज्ञान का दीप जलाने, सुखमय जीवन लाया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।


बहुत समय था खर्च हो गया, जीवन जीते जीते ही।
 संस्कारों का साथ मिल गया, अमिय हलाहल पीते ही ।
जीवन के वंचित कर्मो का  ,लेखा देने आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूँ।


देखो प्रिय! पहले बतला दो , प्रारब्ध का लेखा जोखा।
 कहीं  मुझे तुम भूल न जाना, देकर इस हिय को धोखा। 
प्रेम मिलन के इस बंधन को जोड़, यहाँ तक आया हूँ।
जीवन के अनमोल पलों को संचित करने आया हूँ।


 क्या खोया? क्या पाया? मैंने, कर्मों का प्रतिफल लेकर ।
क्या बोया ?क्या काटा ?मैंने, जन्मों का प्रतिक्षण देकर ।
जनम जनम के इस बंधन को, जोड़ तोड़ कर पाया हूं। 
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं।


स्नेह युक्त बंधन जब पाया, देर हो चुकी थी तब तक।
 जलधारा के मध्य भंवर में ,कश्ती डूब गयी जब तक
भीषण झंझावातों को मैं ,टक्कर देने आया हूं ।
जीवन के अनमोल पलों को, संचित करने आया हूं ।


सुखद ज्ञान का दीप जलाने, सुख मय जीवन लाया हूं।


डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"


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