डाॅ विजय कुमार सिंघल* प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य

*प्राकृतिक चिकित्सा-46*


*हृदय रोगों की विभीषिका*


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संसार में जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें सबसे बड़ा कारण हृदय रोग और हृदयाघात हैं। कुल मौतों में इनसे होने वाली मौतों की संख्या लगभग 27 प्रतिशत है। 2016 में कुल मौतों की संख्या 5.69 करोड़ थी, जिनमें से 1.52 करोड़ केवल हृदय सम्बंधी रोगों के कारण अकाल मृत्यु के शिकार हुए। आज भी इस स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं आया है। आजकल भी हृदय रोग बहुत फैल रहे हैं। पहले यह रोग प्रायः बड़ी उम्र वाले पुरुषों को ही हुआ करते थे, परंतु अब तो बच्चे-बूढ़े-जवान स्त्री-पुरुष सभी को हृदय रोग हो जाते हैं। 


हृदय रोग अपने आप में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि अन्य कई रोगों का सम्मिलित परिणाम होता है। कुछ रोग जैसे रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह, मूत्र विकार, चिंताग्रस्त रहना आदि मिलकर हृदय पर बहुत बोझ डालते हैं। इससे हृदय धीरे-धीरे दुर्बल हो जाता है। इसलिए हृदय को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी रोगों से बचे रहना आवश्यक है। गलत जीवन शैली और भारी प्रदूषण ही इन सभी रोगों का और हृदय रोगों का भी प्रमुख कारण है। जब तक जीवन शैली में उचित परिवर्तन नहीं किया जाएगा, तब तक इन रोगों से छुटकारा पाना लगभग असम्भव है। इसी कारण केवल हृदय बदलने से या बाईपास सर्जरी करने से कुछ समय बाद फिर पहले जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।


हृदय रोगों के साथ बुरी बात यह है कि किसी को हृदयाघात होने से पहले इसके कोई लक्षण कहीं नजर नहीं आते। इस कारण लोग इससे बचाव का प्रबंध नहीं कर पाते। फिर भी कुछ उपाय हैं जिनके द्वारा हृदय दुर्बलता और उससे उत्पन्न होने वाले हृदयाघात से बचकर रहा जा सकता है।


कई विद्वानों ने बताया है कि हृदय रोगों के तीन प्रमुख कारण होते हैं- हरी (Hurry), वरी (Worry) और करी (Curry)। यहाँ ‘हरी’ का अर्थ है- हमेशा भागदौड़ और हड़बड़ी में रहना। अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने या सरल शब्दों में अधिक पैसा कमाने के लिए आदमी बहुत भागदौड़ करता है और इस बात का ध्यान नहीं रखता कि इससे उससे स्वास्थ्य का कैसा सर्वनाश हो रहा है। 


‘वरी’ का अर्थ है- हमेशा चिन्ताग्रस्त रहना। व्यक्ति अनगिनत चिन्ताओं को पाल लेता है, ऐसे लक्ष्य तय कर लेता है जिनको पाना सामान्य तौर पर सरल नहीं है। जब तक वे लक्ष्य प्राप्त नहीं होते तब तक वह बहुत चिन्तित बना रहता है। इसका परिणाम यह होता है कि लक्ष्य प्राप्त होने तक उसका शरीर अनेक रोगों का घर बन जाता है और स्वास्थ्य में इतनी गिरावट आ जाती है कि उसे पुनः ठीक करना असम्भव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य हो जाता है। 


‘करी’ का अर्थ है- स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं का सेवन करना। यह एक कठोर सत्य है कि बाजारू फास्टफूड और माँसाहारी व्यंजन खाने में भले ही स्वादिष्ट लगते हों, परन्तु अन्ततः ये स्वास्थ्य के लिए घातक ही सिद्ध होते हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली और बाजार की प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य इनके जाल में फँसता है और अपने स्वास्थ्य का सर्वनाश कर लेता है। 


इन तीनों में से प्रत्येक कारण अकेला ही मनुष्य के स्वास्थ्य और जीवन के लिए बहुत हानिकारक है और जब ये तीनों एक साथ मिल जाते हैं तो इनकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है। इनके कारण ही मनुष्य का शरीर अनेक रोगों का स्थायी निवास बन जाता है और उनके साथ-साथ हृदय भी दुर्बल होता जाता है। अतः हृदय रोगों से मुक्ति पाने का सही उपाय इन तीनों कारणों को दूर करना ही है। 


ऊपर बताये गये रोगों के उपचार के बारे में इस लेखमाला में विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। यदि किसी को इनमें से कोई रोग है तो उसका उचित प्राकृतिक उपचार करना चाहिए। संक्षेप में इतना ही समझ लीजिए कि यदि आप हृदय रोगों से बचना चाहते हैं तो आपको खूब पानी पीना चाहिए, अधिक से अधिक पैदल चलना चाहिए, पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम करना चाहिए, गहरी सांसें लेनी चाहिए, सात्विक वस्तुएँ उचित मात्रा में खानी चाहिए तथा सबसे बढ़कर हमेशा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। जीवन शैली में परिवर्तन किये बिना हृदय रोगों से मुक्ति पाना असम्भव है। अगली कड़ी में हम हृदय रोगों से बचने और उनसे मुक्ति पाने के उपायों की विस्तृत चर्चा करेंगे।


*-- डाॅ विजय कुमार सिंघल*
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596
चैत्र कृ 6, सं 2076 वि (15 मार्च, 2020)


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